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मन का बंदर

विक्टर
विक्टर
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mann ka bandar

मनकाबंदररस्ताढूंडे,

ढूंडेअपनीमंज़िलको,

उपरवालाजिसकोबाँधे

सोतामस्तमदारीसा!!


इतउतभागे, मनललचाए

डालडालकेहरफलको,

सरपटदौड़ेजंगलजंगल,

भूलकेअपनेबंधनको!!



मेरेअंदरऐसाबंदर,

जिसकोतूबाँधेबारबार,

कभीकाशतूपढ़लेज़रासामुझको,

औरदेदेथोड़ेक्षणउधार!!



औरकाशचलेकुछऐसाचक्कर,

किखुदघूमेतूअपनीलीला,

औरकरलूँमैंबसअपनीअपनी,

चखलूँहरफलटहनीटहनी!!



बसएकबारयहपलखोजाए,

जैसाचाहूंवहहोजाए,

फिरजोतूबोलेवहकरजाऊं,

औरकूदकूदमैंनाचुगाऊँ!!



क्यूँमनकाबंदरइतनाखेचल,

नाकहींटिकेबरबसहीचंचल,

इसकीउड़ानबिजलीसमान,

औरकालचक्रसेयूँअंजान!!



नहींग्यातजिसेअपनायहबंधन,

लगारहेबसयहीयहचिंतन,

कबमदारीढीलयेदेगा,

औरमनफिरअपनीकरलेगा!!



औरढूंढेगाअपनारस्ता,

औरअपनीउसमंज़िलको,

जोनिश्चितकरउपरवाला,

सोतामस्तमदारीसा!

Victor

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